गुप्त संकटों और विपदाओं की कथा- “स्नेक इन द गंगा” समीक्षा – डॉ.मनीष श्रीवास्तव

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अन्य पाठकों की तरह, मैं भी इस पुस्तक के शीर्षक, “स्नेक इन द गंगा” से आकर्षित हुआ था और यही कारण था कि इस पुस्तक को पढ़ने का मन बना बैठा था।
जाने-माने लेखक राजीव मल्होत्रा और सह-लेखक विजया विश्वनाथन की इस नई पुस्तक, “स्नेक इन द गंगा: ब्रेकिंग इंडिया 2.0,” ने पाठकों और समीक्षकों को मोहित कर लिया है। राजीव मल्होत्रा ने भारतीय सभ्यता से संबंधित विषयों पर पहले भी कार्य किया है और उनमें सकारात्मक सक्रियता को प्रेरित करने की प्रवृत्ति है।

हम सभी भारतियों के लिए गंगा सदैव माँ समान रही है। हम सभी यह मानते हैं कि गंगा स्नान करने के लिए एक सुरक्षित स्थान है। गंगा स्नान के समय आप माँ गंगा के साथ एकमयी हो जाते हैं और पवित्रता की भावना का अनुभव करते हैं। आप स्वयं को सुरक्षित, सहज और पवित्रता से परिपूर्ण पाते हैं। यह वह समय होता है जब आप अपने को पूर्ण रूप से समर्पित करते हुए अपनी सुरक्षा के प्रति सजग भी नहीं रहते। आप को यह स्वप्न में भी विचार नहीं आता कि दूर-दूर तक आप विषैले सर्पों से घिरे हुए हैं।

जैसे-जैसे आप यह पुस्तक पढ़ते जाते हैं आपको यह समझ आने लगता है कि पुस्तक का शीर्षक गुप्त संकटों और विपदाओं हेतु एक रूपक है।

पुस्तक से पता चलता है कि भारतीय धर्म, संस्कृति के विरोधी उस सतह के नीचे छिपे हुए हैं जहाँ आप का ध्यान कभी जाता ही नहीं है।

हालांकि ये चिंताएं राजीव मल्होत्रा की प्रसिद्ध पुस्तक, ब्रेकिंग इंडिया, जो 2011 में आयी थी, की तुलना में नई हैं। उनके अनुसार वर्तमान समय में भारत विरोधी ताकतें अधिक शक्तिशाली और पहले से कहीं अधिक वित्त पोषित प्रतीत होती हैं। यही कारण है कि इस पुस्तक का उपशीर्षक “ब्रेकिंग इंडिया 2.0” दिया गया है। 
यह पुस्तक हार्वर्ड विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में भारत विरोधी चलाये जा रहे नकारात्मक शैक्षिक विमर्श और रूपरेखाओं की व्याख्या करती है। आपको कुछ पृष्ठों के पश्चात यह भी ज्ञात होता है कि कैसे भारत के कुछ प्रसिद्ध राष्ट्रवादी तथा बुद्धिजीवी सक्रिय रूप से ऐसी हानिकारक शक्तियों का समर्थन कर रहे हैं।

यह पुस्तक इस बात की भी विवेचना करती है कि कैसे भारत सरकार की कुछ परियोजनाओं के माध्यम से “वोकवाद” ने घुसपैठ की है। उदाहरण के लिए आप भारत की 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देख सकते है जो साफ़ तौर पर हार्वर्ड की उदार कलाओं को प्रोत्साहित कर रही है।

इस पुस्तक में आईपीएसएमएफ, गोदरेज ग्रुप, ओमिडयार नेटवर्क, J-PAL, अशोका यूनिवर्सिटी और अजीम प्रेमजी ग्रुप जैसे कई एनजीओ, समाजसेवी संगठनों और विश्वविद्यालयों के नाम, अमेरिकी-आधारित वामपंथियों के इस षड्यंत्र में कथित रूप से भाग लेने के रूप में हैं।

“स्नेक्स इन द गंगा” भारत की अखंडता के विरुद्ध लड़े जा रहे उस क्रूर संघर्ष के बारे में एक भयानक विवरण प्रदान करती है जिसे संसाधनों से भरपूर एक वैश्विक समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है। यह एक नई विचारधारा से प्रेरित है जहां नस्ल और जाति को जोड़ दिया गया हैं। राष्ट्र के वंचित समूहों को अश्वेतों के रूप में बताया गया है, जबकि भारतीय ब्राह्मणों को राष्ट्र का श्वेत समूह बना दिया गया है।

लेखक का मानना है कि “वोकवादी आंदोलन, का एक मात्र उद्देश्य देश की सरकार, शैक्षणिक संस्थानों, कला, अर्थव्यवस्था और समुदाय के विरुद्ध लगातार आक्रमण कर भारतीय संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करना है।
लेखक के अनुसार, इन सामाजिक सिद्धांतों को भारतीय विद्वानों, कार्यकर्ताओं और बिकाऊ मीडिया के सहयोग से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था। लेखक का यह भी दावा है कि इस साजिश के कारण भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है।

लेखक के अनुसार शीर्ष अमेरिकी विश्वविद्यालय उन साँपों की बाम्बी के सामना हैं जहाँ इन साँपों का पालन पोषण किया जाता है। हालाँकि आमतौर पर पश्चिमी विद्वान शीर्ष स्तरों पर नेतृत्व की अधिकांश भूमिकाओं पर कब्जा कर लेते हैं, लेकिन इस भारतीय-विरोधी सामग्री के निर्माण में अनेक स्तरों पर कुछ प्रसिद्ध भारतीय भी शामिल हैं।
इन सभी वैश्विक ताकतों की एक विशेष तथा असाधारण कार्यप्रणाली है जिसके चलते बड़ी संख्या में उज्ज्वल युवा भारतीयों को हार्वर्ड की ओर आकर्षित किया जाता है, प्रशिक्षित और प्रेरित किया जाता है, और फिर राष्ट्र-विरोधी विचारों को फैलाने के लिए अपने भारत वापस भेज दिया जाता है। हार्वर्ड के सार्वजनिक स्वास्थ्य, कला, राजनीति, अर्थशास्त्र और दक्षिण एशियाई अध्ययन के विभिन्न विभाग और केंद्र ऐसे ही साँपों की बाम्बी हैं।

इस पुस्तक में राजीव मल्होत्रा का मौलिक दावा यह है कि अमेरिकी शिक्षाविदों ने जानबूझकर हिंदू सभ्यता, संस्कृति, बौद्धिक मूल्यों, परंपराओं, विरासत को कम करके आंका है और जिसे हम सभी को हर हाल में अस्वीकृत करना होगा।

उन्होंने इस विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें लगभग दस साल पहले “ब्रेकिंग इंडिया” नामक एक पुस्तक भी शामिल है। “ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस” शब्द को मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों, “छद्म-धर्मनिरपेक्ष”, “विदेशी वित्तपोषित एनजीओ”, मिशनरियों, और आम तौर पर हिंदू संस्कृति का अपमान करने वाले किसी भी व्यक्ति के असमान समूह का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया था। इसमें उन्होंने बताया था कि कैसे अमेरिका और यूरोपीय चर्च, थिंक टैंक, फाउंडेशन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भारत में हस्तक्षेप किया था।

यह पुस्तक निस्संदेह कई भारतीयों पर प्रभाव डालेगी और ऑनलाइन चर्चा पर हावी होगी। पुस्तक में, कुछ ऐसी संस्थाओं का उल्लेख किया गया है जो पहले ही कानूनी जांच करा चुकी हैं।
यह पुस्तक निश्चित रूप से उन सभी के लिए पढ़ने योग्य है जो दक्षिणपंथी व्यक्तियों के दृष्टिकोण को समझना चाहते हैं और वामपंथियों के बारे में कुछ नया जानना चाहते हैं।

लेखक के बारे में-
राजीव मल्होत्रा एक कंप्यूटर वैज्ञानिक और भौतिक विज्ञानी हैं, जो सभ्यता के अध्ययन, विश्व धर्मों और इंटरकल्चरल कनेक्शन के विशेषज्ञ हैं। उनकी वेबसाइट के अनुसार, वह गैर-लाभकारी इन्फिनिटी फाउंडेशन के संस्थापक हैं और एक ऐतिहासिक, सामाजिक विज्ञान और मानसिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण (प्रिंसटन, यूएस) से सभ्यताओं और प्रौद्योगिकी के बीच संबंधों पर शोध कर रहे हैं।

विश्वनाथन ने व्हार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए किया है और उन्हें मैकेनिकल इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित किया गया था। उनके लेखक बायो के अनुसार, उन्होंने अमेरिका, सिंगापुर और यूरोप को कवर करने वाले एक सफल कॉर्पोरेट कैरियर के बाद शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने आर्ष विद्या गुरुकुलम के स्वामी दयानंद सरस्वती के निर्देशन में वेदांत का अध्ययन किया। विश्वनाथन इन्फिनिटी फाउंडेशन के निदेशक मंडल की सदस्य हैं।


समीक्षक – डॉ.मनीष श्रीवास्तव

Manish Shrivastava’s journey embarked as an enthusiast of the Hindi language, which is also his mother tongue, and began in his college days as a playwright but came to a standstill when the burden of livelihood overpowered his adoration for and pursuit of writing. His profession range-rovered him to different parts of India, starting from Bundelkhand, which is also his hometown, to western UP, Madhya Pradesh, Andhra, Kerala, and Karnataka. His extensive experience even took him to South East Asia and he is presently settled in Jakarta, Indonesia.

But the aspiration to accomplish his dream in writing and exploring ideas to serve on an enriched platform for Hindi readers made him pen down his first Hindi novel Roohi-Ek Paheli and its scrupulous acceptance among the masses made his confidence in writing more prominent and hence, Main Munna Hu was conceived on paper.

Manish Shrivastava’s latest series- Krantidoot is based on our Freedom Fighters. 5 Books of This series have got published and have won the hearts of readers across the world!

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